Best Ghazal Shayari in Hindi - Love Shayari in Hindi अपनी यादें... अपनी यादें अपनी बातें लेकर जाना भूल गये; जाने वाले जल्द...
अपनी यादें अपनी बातें लेकर जाना भूल गये;
जाने वाले जल्दी में मिलकर जाना भूल गये;
मुड़-मुड़ कर देखा था जाते वक़्त रास्ते में उन्होंने;
जैसे कुछ जरुरी था, जो वो हमें बताना भूल गये;
वक़्त-ए-रुखसत भी रो रहा था हमारी बेबसी पर;
उनके आंसू तो वहीं रह गये, वो बाहर ही आना भूल गये।
मंजिल ...
पहर दिन सप्ताह महीने साल;
मत देखों मंजिल की चाह में;
ये देखों कि कितना चले हो;
और उसमें भी कितना भटके हो राह में;
यदि यह भटकाव कुछ कम हो जाए;
और तेजी ला दो चाल में;
तो बहुत मुमकिन है कि कामयाबी;
हांसिल हो जाए नए साल में।
पत्नी बोली...
क्यों जी, दीपावली का सारा सामान आप लाये;
पर पटाखा एक भी न लाये;
मैंने कहा, तुम किस पटाखे से कम हो;
सच कहूँ तो समूचा डायनामाइट बम हो;
अपनी गलती हमेशा मुझ पर जड़ती हो;
सफाई में जब भी मैं कुछ कहूँ मुझ पर फट पड़ती हो।
यूँ तो यारो
यूँ तो यारो थकान भारी है;
फिर भी ख़ुद की तलाश जारी है;
हम में हर इक में इक परिन्दा है;
और हर इक में इक शिकारी है;
लोग दुनिया में दुख से मरते हैं;
और दुख से हमारी यारी है;
कितने ख़ुश हैं, उन्हें कहाँ मालूम;
हमने क़स्दन ये बाज़ी हारी है;
दिल को बेमोल बेच आए हम;
अपनी-अपनी दुकानदारी है।
मैं खुद भी सोचता हूँ...
मैं खुद भी सोचता हूँ ये क्या मेरा हाल है;
जिसका जवाब चाहिए, वो क्या सवाल है;
घर से चला तो दिल के सिवा पास कुछ न था;
क्या मुझसे खो गया है, मुझे क्या मलाल है;
आसूदगी से दिल के सभी दाग धुल गए;
लेकिन वो कैसे जाए, जो शीशे में बल है;
बे-दस्तो-पा हू आज तो इल्जाम किसको दूँ;
कल मैंने ही बुना था, ये मेरा ही जाल है;
फिर कोई ख्वाब देखूं, कोई आरजू करूँ;
अब ऐ दिल-ए-तबाह, तेरा क्या ख्याल है।
तेरा चेहरा सुब्ह का तारा लगता है;
सुब्ह का तारा कितना प्यारा लगता है;
तुम से मिल कर इमली मीठी लगती है;
तुम से बिछड़ कर शहद भी खारा लगता है;
रात हमारे साथ तू जागा करता है;
चाँद बता तू कौन हमारा लगता है;
किस को खबर ये कितनी कयामत ढाता है;
ये लड़का जो इतना बेचारा लगता है;
तितली चमन में फूल से लिपटी रहती है;
फिर भी चमन में फूल कँवारा लगता है;
'कैफ' वो कल का 'कैफ' कहाँ है आज मियाँ;
ये तो कोई वक्त का मारा लगता है।
कोई बिजली इन ख़राबों में घटा रौशन करे;
ऐ अँधेरी बस्तियो! तुमको खुदा रौशन करे;
नन्हें होंठों पर खिलें मासूम लफ़्ज़ों के गुलाब;
और माथे पर कोई हर्फ़-ए-दुआ रौशन करे;
ज़र्द चेहरों पर भी चमके सुर्ख जज़्बों की धनक;
साँवले हाथों को भी रंग-ए-हिना रौशन करे;
एक लड़का शहर की रौनक़ में सब कुछ भूल जाए;
एक बुढ़िया रोज़ चौखट पर दिया रौशन करे;
ख़ैर अगर तुम से न जल पाएँ वफाओं के चिराग;
तुम बुझाना मत जो कोई दूसरा रौशन करे।
हर जनम में....
हर जनम में उसी की चाहत थे;
हम किसी और की अमानत थे;
उसकी आँखों में झिलमिलाती हुई;
हम ग़ज़ल की कोई अलामत थे;
तेरी चादर में तन समेट लिया;
हम कहाँ के दराज़क़ामत थे;
जैसे जंगल में आग लग जाये;
हम कभी इतने ख़ूबसूरत थे;
पास रहकर भी दूर-दूर रहे;
हम नये दौर की मोहब्बत थे;
इस ख़ुशी में मुझे ख़याल आया;
ग़म के दिन कितने ख़ूबसूरत थे
दिन में इन जुगनुओं से क्या लेना;
ये दिये रात की ज़रूरत थे।
दुख देकर सवाल करते हो,
तुम भी गालिब, कमाल करते हो;
देख कर पुछ लिया हाल मेरा,
चलो इतना तो ख्याल करते हो;
शहर-ए-दिल मेँ उदासियाँ कैसी,
ये भी मुझसे सवाल करते हो;
मरना चाहे तो मर नही सकते,
तुम भी जीना मुहाल करते हो;
अब किस-किस की मिसाल दूँ तुमको,
तुम हर सितम बेमिसाल करते हो।
अपनी यादें...
अपनी यादें अपनी बातें लेकर जाना भूल गये;
जाने वाले जल्दी में मिलकर जाना भूल गये;
मुड़-मुड़ कर देखा था जाते वक़्त रास्ते में उन्होंने;
जैसे कुछ जरुरी था, जो वो हमें बताना भूल गये;
वक़्त-ए-रुखसत भी रो रहा था हमारी बेबसी पर;
उनके आंसू तो वहीं रह गये, वो बाहर ही आना भूल गये।
मंजिल ...
पहर दिन सप्ताह महीने साल;
मत देखों मंजिल की चाह में;
ये देखों कि कितना चले हो;
और उसमें भी कितना भटके हो राह में;
यदि यह भटकाव कुछ कम हो जाए;
और तेजी ला दो चाल में;
तो बहुत मुमकिन है कि कामयाबी;
हांसिल हो जाए नए साल में।
चैन मिल जाए.....
कम नहीं मेरी ज़िन्दगी के लिए;
चैन मिल जाए दो घडी के लिए;
दिले-ज़ार कौन है तेरा;
क्यों तड़पता है यूं किसी के लिए;
चैन मिल जाए...
कितने सामान कर लिए पैदा;
इतनी छोटी सी ज़िन्दगी के लिए;
चैन मिल जाए....
ऐसा फ़ैयाज़ ग़म ने घेरा है;
लब तरस ही गए हंसी के लिए;
चैन मिल जाए....
दुनियां तमाम ख़रीद ली मेरी
नींद मगर भूल गये वो अमीर
फूलों के शहर में घुमाता है कोई
रह-रह के हाय याद आता है कोई
बुझी का बुझाना क्या जली का जलाना क्या
रिश्ते निभा न सकें उनसे मिलना मिलाना क्या
इसके तेवर तो देखो इंसान से तीखे
हौसला सीखे तो कोई मच्छर से सीखे
मंज़िल होगी आसमाँ ऐसा यकीं कुछ कम है
अपने नक्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है
मुहब्बत के सिवा जीने की तदबीर न देख,
रक़्स करना है तो फिर पांव की ज़ंजीर न देख.
वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे
मैं तुझको भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न करे
रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िन्दगी बनकर
ये और बात मेरी ज़िन्दगी वफ़ा न करे
ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में
ख़ुदा किसी से किसी को मगर जुदा न करे
सुना है उसको मोहब्बत दुआयें देती है
जो दिल पे चोट तो खाये मगर गिला न करे
ज़माना देख चुका है परख चुका है उसे
क़तील जान से जाये पर इल्तजा न करे
किया है प्यार जिसे हमने ज़िन्दगी की तरह
वो आशना* भी मिला हमसे अजनबी की तरह
किसे ख़बर थी बढ़ेगी कुछ और तारीकी
छुपेगा वो किसी बदली में चाँदनी की तरह
बढ़ा के प्यास मेरी उस ने हाथ छोड़ दिया
वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल्लगी की तरह
सितम तो ये है कि वो भी ना बन सका अपना
कूबूल हमने किये जिसके गम खुशी कि तरह
कभी न सोचा था हमने क़तील उस के लिये
करेगा हम पे सितम वो भी हर किसी की तरह
अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ
कोई आसू तेरे दामन पर गिराकर
बूंद को मोती बनाना चाहता हूँ
थक गया मैं करते करते याद तुझको
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ
छा रहा हैं सारी बस्ती में अंधेरा
रोशनी को घर जलाना चाहता हूँ
आखरी हिचकी तेरे ज़ानो पे आये
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ